'मैन आर फ्रॉम मार्स, वुमेन्स आर फ्रॉम वीनस' के लेखक जॉन ग्रे स्त्री-पुरुष को दो अलग-अलग ग्रह से आए प्राणी मानते हैं। उनका कहना है कि पुरुष मंगल ग्रह से आए हैं, स्त्री शुक्र ग्रह से। दोनों के स्वभाव, जरूरतें, रुचियाँ, भाषा, व्यवहार, प्रेम, सौहार्द में काफी अंतर है।
पृथ्वी पर आने के बाद स्त्री और पुरुष दोनों की स्मृति चली जाती है। दोनों ये भूल जाते हैं कि वे अलग-अलग ग्रह से आए थे। उनके स्वभाव में भिन्नाताएँ होने की वजह से दोनों आपस में लड़ने लगते हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में भी स्त्री-पुरुष में अनेक अंतर के बारे में पता चला है। मनोचिकित्सकों का भी कहना है कि स्त्री-पुरुष के स्वभाव में भी अनेक अंतर होते हैं। सिर्फ शारीरिक अंतर ही नहीं, अपने स्वभाव में के अंतर की वजह से भी वे स्त्री या पुरुष के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका यह भी कहना है कि यदि स्त्री या पुरुष के सारे गुण एक जैसे होते तो उनकी पहचान स्त्री या पुरुष के रूप में कैसे होती?
पुरुष हमेशा सोचते हैं कि स्त्री हमेशा उनकी तरह सोचे और बातें करे जबकि स्त्री उम्मीद करती है कि पुरुष उसी की तरह अनुभव करे और चर्चा करे, जिस तरह से वह करती है। यही बाते दोनों के बीच टकराव पैदा करती है। दोनों एक-दूसरे को समझ नहीं पाते हैं।
एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान नहीं कर पाते हैं। धीरे-धीरे समस्याएँ पैदा होने लगती हैं। बोलचाल कम होने लगती है, विश्वास कम होने लगता है। वे एक-दूसरे को नीचा दिखाना शुरू कर देते हैं। प्रेम की शुरुआत की कहानी तलाक पर जाकर समाप्त होती है।
यह मानना पड़ेगा कि स्त्री-पुरुष दोनों अलग-अलग ग्रह से आए हुए हैं क्योंकि दोनों अलग-अलग परिवेश में पले-बढ़े होते हैं, उनका रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, चाहत, जरूरत, रुचि-खूबी, व्यवहार-आदत आदि सबकुछ अलग होते हैं।
दोनों की भाषा (सोच-विचार तथा वार्तालाप का तरीका) भी भिन्ना-भिन्ना होती है। पुरुष पुरुष की भाषा बोलता है और स्त्री स्त्री की। दोनों की भाषा भिन्न-भिन्न होने से दोनों को एक-दूसरे की भाषा को समझ पाने में परेशानी होती है। कुछ स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे की भाषा बिलकुल भी समझ में नहीं आती जिन्हें एक-दूसरे की भाषा बिलकुल भी नहीं समझ में आती उन्हें एक-दूसरे का साथ निभाने में बड़ी परेशानी हो जाती है।
एक-दूसरे की भाषा को समझना कोई परेशानी वाली बात नहीं है। यदि दोनों अपनी-अपनी बातों पर ध्यान दें तो बड़ी आसानी से समझ सकते हैं। समझ में न आने पर दोनों अनुवाद करके समझा सकते हैं। इसके लिए दोनों को समझदारी से काम लेने की जरूरत होती है। परेशानी तब आती है जब दोनों अपनी-अपनी ही भाषा कहते हैं या दूसरे की भाषा वे जानना व समझना भी नहीं चाहते।
स्त्री-पुरुष अलग-अलग ग्रह से आए हैं तो क्या हुआ? दोनों यदि समझदारी से काम लें तो सारी समस्या का हल हो सकता है। बजाय बातचीत से अपनी समस्या को सुलझा सकते हैं। भाषा सीख लेने में बड़ी समझदारी है।
स्त्री की भाषा :
स्त्री जब भी अपनी समस्याओं के बारे में बात करती है तो वह हमदर्दी चाहती है। उससे बहस करने की बजाय पुरुष उसे हमदर्दी दे। जितनी हमदर्दी या तसल्ली मिलेगी, स्त्री खुद को उतना ही पुरुष के करीब महसूस करेगी।
स्त्री हमेशा चाहती है कि पुरुष उसकी बातों को गौर से सुने। उसकी बातों को गौर से सुनने पर उसे संतुष्टि मिलती है।
जब स्त्री का मूड ठीक नहीं होता है, तब वह अधिक बोलती है। ऐसे में यदि पुरुष उसकी बात को गौर से सुने तो उसका मूड ठीक हो जाता है।
स्त्री जब बोलती है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह पुरुष को दोष देने के लिए ऐसा करती है। वह ये सब सिर्फ मन का गुबार निकालने के लिए करती है।
स्त्री हमेशा डिटेल में बात करती है। यह उसका स्वभाव है। इन्हें समझ लेना समझदार पुरुष का काम है।
पुरुष की भाषा :
पुरुष जब तनाव में होते हैं वे गुफा में जाना पसंद करते हैं यानी अकेले में रहना चाहते हैं। स्त्री को चाहिए ऐसे में उसे परेशान न करे। उसे अकेला रहने दे ताकि खुद ही सामान्य हो जाए। जब वह सामान्य हो जाता है तब हो सकता है आपसे अपनी परेशानी भी बाँट ले।
पुरुष जब तनाव में होते हैं। तब किसी तरह की बात करना पसंद नहीं करते हैं। अपना तनाव कम करने के लिए शांत रहना पसंद करते हैं। ऐसे में स्त्री को चाहिए उसे जवाब देने या बातचीत करने की बजाय चुप रहे।
पुरुष चुपचाप बात को सुन रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह बातों को नहीं सुन रहा है। उस वक्त उसके दिमाग में समस्या का समाधान भी घूम रहा होता है। स्त्री को चाहिए परेशान होने की बजाय अपनी पूरी बात कहे।
पुरुष हमेशा बातों का तथ्यात्मक अर्थ निकालते हैं। इसलिए स्त्री को चाहिए कि उन्हें जानकारी घुमा-फिराकर बात करने की बजाय सीधे व साधारण शब्दों में दे।
पुरुष की चुप्पी का अर्थ वह मुझसे प्यार नहीं करता, वह मुझसे नफरत करता है, मुझे अब छोड़ देना चाहता है, मुझे लग रहा है उसे किसी दूसरी औरत से प्यार हो गया है, नहीं लगाना चाहिए। चुप रहकर वह दिमाग को शांत रखना चाहता है। उस वक्त पुरुष किसी सही निर्णय की तलाश में रहते हैं।
और अंत में स्त्री-पुरुष दोनों को ही एक-दूसरे के स्वाभिमान को चोट पहुँचाने से बचना चाहिए। इसके बजाय क्रोध का आवेश ठंडा होने का इंतजार करना बेहतर होगा।
Friday, May 7, 2010
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