Friday, May 7, 2010

मैं चाहूँ, मैं सबके मन को भाऊँ!

आपके मन में आता है, कहाँ से आ टपका यार! या कभी सामने वाले को देखकर आपके दिमाग का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचता है। कुछ लोगों को सामने पाकर आपके दिल को एक सुकून भी पहुँचता होगा। आखिर ऐसा क्यों होता है कि कोई हमें अच्छा लगता है तो कोई बुरा? 

आप भी किसी को अच्छे लग सकते हैं या किसी को आपको देखकर नाक-भौंह सिकोड़ने की इच्छा होती होगी। क्यूँ न ऐसा कुछ करें कि आप दूसरों के दिलों में अपने लिए जगह बना लें। आपको बस स्वयं को कुछ मापदंडों पर कसकर थोड़ा बदलना है।

हँसता हुआ नूरानी चेहरा : 
हँसता, मुस्कुराता चेहरा प्रसन्नता का अहसास स्वयं के साथ-साथ सामने वाले को भी कराता है। चेहरे पर मायूसी की परत न जमने दें। घड़ी में दस बजकर दस मिनट की तरह मुस्कान रखें, न कि साढ़े पाँच बजे की तरह मुँह लटकाए रखें।

एक मुलाकात जोश भरी : 
जब आप पहली बार किसी से मिल रहे हों तो मुलाकात में गर्मजोशी हो, उत्साह हो, ऐसा लगे कि उसी व्यक्ति से मिलने को आतुर थे। मुलाकात में ठंडापन न हो। 

आपका नाम... ! : 
जिससे भी मिलें उसका नाम जरूर याद रखें। भले ही कहावत हो कि नाम में क्या रखा है, मगर जब आप भीड़ में किसी व्यक्ति को उसके नाम से, पुकारते हैं तो वह आपका मुरीद हो जाता है।

वाह, आपका तो जवाब नहीं : 
अच्छी वस्तु हो या व्यक्ति, उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। झूठी तारीफ न करें। झूठी प्रशंसा कर भले ही उस व्यक्ति की निगाह में आप आ जाएँ, मगर आपको लोग चापलूस या झूठा कहेंगे। 

मैंने तो ऐसा कहा था.. : 
आपको इस बात का इल्म होना चाहिए कि आप क्या कह रहे हैं। अपनी बात पूरी शिद्दत के साथ विस्तार से कहें और सही ढंग से कहें। ऐसा न हो कि आप वह बात कहना ही भूल जाएँ जो कहना चाह रहे थे या जो आप कह रहे हों, उसका मतलब ही वह न निकले जो आप कहना चाह रहे हों।

सुनिए तो... : 
केवल स्वयं ही कहते न जाएँ, सामने वाले की भी सुनें। आप जो कहना चाह रहे हैं हो सकता है उसी के संदर्भ में सामने वाला व्यक्ति ऐसी कोई जानकारी आपको मुहैया करा दे जो आपके काम की हो। ऐसा तब होगा जब आप उसे सुनेंगे।

बुद्धिमान छलकी न जाए! : 
कुछ लोग स्वयं को बुद्धिमान और सामने वाले को मूर्ख समझते हैं। ऐसा कभी न करें। यदि आप कुछ कह रहे हैं तो उसकी स्वीकारोक्ति ऐसे न कराएँ- आई बात समझ में, या समझे क्या? रहने दो ये तुम्हारी समझ से बाहर है? ऐसा कहकर आप सामने वाले के मन को आहत कर रहे होते हैं। 

ताना न मारें : 
कुछ लोगों की आदत होती है, वे बातों-बातों में व्यंग्य या ताना मार देते हैं। ऐसा न करें। ख्याल रखें तीर या तलवार का जख्म भर जाता है, मगर शब्दों की चोट जिंदगी भर टीसती है। अगर आप किसी पर ताना कसेंगे तो मौका मिलते ही वह भी आप पर व्यंग्य बाण चलाएगा।

तर्क करें, बहस नहीं : 
अपनी बात कहने के लिए अपने तर्क प्रस्तुत करें, न कि सामने वाले से बहस करें। इससे आपकी छवि धूमिल होती है। बहस कर अपनी बात जबरन मनवाने की जगह दूसरों के तर्क भी सुनें। संभव है वह सही हो।

घड़ी देखी आपने? : 
अपनी बात को सही ढंग से सही समय पर कहें तो वह ज्यादा असर छोड़ती है। किसी के ऑफिस जाने का समय हो रहा है और आप पहुँच गए अपनी बात कहने। वह भी सुनी-अनसुनी कर देगा। ऐसी स्थितियों से बचें।

खुशी या जलन? : 
किसी की उपलब्धि पर खुशी जाहिर कीजिए, उससे जले नहीं। ईर्ष्या से स्वयं का नुकसान होता है, सामने वाले का नहीं। सफलता पर प्रसन्नाता जाहिर करने का मतलब है कि आप उसके प्रयासों की सराहना कर रहे हैं।

धन्यवाद/स्वागत कहना सीखें : 
ये वे शब्द हैं जो जादू करते हैं। ऐसा जादू जिन्हें आप भी नहीं जानते। यकीन न आए तो आजमाकर देख लें। किसी का शालीनता से, सभ्यता से, आत्मीयता से स्वागत करें, किसी ने आपके लिए कुछ किया है तो धन्यवाद कह दें, वह आपका मुरीद हो जाएगा। हाँ, अगर आपने धन्यवाद या शुक्रिया ऐसे कहा जैसे उसके सिर पर हथौड़ा मार दिया हो, तो इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

दुःख के सहभागी बनें : 
दूसरों पर अचानक आई विपदा या दुःख के समय उसमें सहभागी बनें, सांत्वना दें। सुख में न सही, दुख के समय सहभागी बनें। ऐसे समय में आपकी उपस्थिति एक अर्थ में सामने वाले को ढाँढस बँधाती है।

महत्वाकांक्षा पालें, तनाव नहीं : 
जिंदगी में किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है, मगर उसके लिए हरदम तनावयुक्त रहना अच्छा नहीं है। तनावग्रस्त रहने से दिमाग में भटकाव पैदा होता है, क्षमताएँ बिगड़ती हैं, जीवन अस्त-व्यस्त होता है। आप अपने व्यक्तित्व को नुकसान पहुँचाते हैं, अतः तनाव को फटकने नहीं दें और जिंदगी में हमेशा सकारात्मक रवैया अपनाएँ।

पूर्वाग्रह से पीड़ित न रहें : 
अपने दिमाग में पूर्वाग्रह को घर न बनाने दें। चाहे वह दूसरों के प्रति हो या अपने प्रति। मेरे से यह नहीं होगा या मैं नहीं कर सकता जैसे अनेक पूर्वाग्रह दिमाग में अपने लिए और दूसरे के बारे में जैसे वह तो है ही ऐसा, नहीं पालें। पहले मिलें और फिर राय बनाएँ।

गलती स्वीकारें : 
अपनी गलती स्वीकार करने में शर्म महसूस न करें। गलती इंसान से ही होती है। आप गलत हैं तो तुरंत बेहिचक स्वीकार करें। गलती छिपाकर हम गलतियों पर गलतियाँ करते जाएँगे।

अच्छी किताबें पढ़ें : 
बुरा वक्त सब पर आता है, इस समय में जब सब आपका साथ छोड़ देते हैं, तब किताबें सबसे अच्छी दोस्त साबित होती हैं। उनका साथ न छोड़ें। यही आपको राह दिखाती हैं।

सीखने की ललक भी रखें : 
जीवन गतिशील है। हमेशा सीखने की ललक रखें। चाहे अपने से छोटे व्यक्ति से ही सीखना पड़े। सीखें, जीवन में ठहराव न आने दें। गति ही प्रगति का कारण है, अतः सीखें।

ऐसे एक नहीं अनेक छोटे-छोटे कारण हैं जो आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा सकते हैं। मसलन दूसरों को नीचा न दिखाएँ,उसकी तौहीन न करें, भाग्य का रोना न रोएँ आदि। आप चाहते हैं कि लोगों के दिल में आपके लिए जगह बने तो यह आप पर निर्भर है।

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